वनाधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वनाधिकारों की मानयता) अधिनियम-2006
वनाधिकार अधिनियम-2006
FRA 2006 (Forest Right Act) वनाधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वनाधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 01. अधिनियम एवं नियम की विस्तृत जानकारी वन क्षेत्र के सभी निवासियों को भली-भांति अवगत हो।
02. अधिनियम, 2006 के तारतम्य में 2008 में नियम बनाये गये की भी जानकारी क्रमांक-1 अनुसार अवगत हो ।
03. वनों की सुरक्षा, जैव विविधता का संरक्षण, खाद्यान्य सुरक्षिता की जिम्मेदारी वन क्षेत्र के सभी समुदायों के समय में लाया जावे।
04. अ. 13 दिसम्बर, 2005 के पहले से वन भूमि पर काबिज वन भूमि का उपयोग खेती के लिए करने वालों को व्यक्तिगत अधिकार-पत्र दिया गया अथवा नहीं ।
ब. वन क्षेत्र से व्यक्तिगत रूप में वन को क्षति पहुंचाये बगैर वनोपज का दोहन और जीवनोपयोगी वनोपज का संग्रहण किये जाने की विधि बताया जावे।
2. सामुदायिक वन अधिकार- आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभ्यारण्य एवं राष्ट्रीय वनों पर अधिकार प्राप्त करने के प्रावधान हैं। वन अधिकार मांगने की व्यवस्था निम्नानुसार है-
1. ग्राम सभा स्तर पर ग्राम वन अधिकार समिति (परम्परागत पारा, टोला एवं पृथक बसाहट वाले मोहल्ला के सभी मतदाता मिलकर बहुमत से अपने गांव की "वन अधिकार समिति " का गठन करेगी।)
2. उप विभागीय स्तर पर " उप विभागीय वन अधिकारी समिति " का गठन होगा।
3. जिला स्तर पर "जिला वन अधिकार समिति" का गठन किया जायेगा जो वन अधिकार की मांग पर अंतिम स्वीकृति प्रदान करेगी।
3. वन अधिकार के क्रियान्वयन के उपबंध निम्नानुसार है -
1. सामुदायिक वन अधिकार की धारा-3.1(a) से (m)
सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार-धारा-3.1 (i)
2. ग्राम के शासकीय विकास योजना के क्रियान्वयन हेतु आवश्यकता अनुसार वन भूमि को हस्तांतरित करने का अधिकार-धारा-3.2
3. पुराने समय से किये जा रहे विस्तार के अधिकार को जारी रखा जाना- धारा-3.1 (b)
4. इमारती लकड़ी के अलावा अन्य सभी वनोपजों पर मालिकाना अधिकार- संग्रहण करना, विक्रय करना अथवा प्रसंस्करण करना-धारा 3.1 (c)
5. तालाब, नदियों से मछली मारना, भोज्य जीव जमा करना, पालतू पशु चराना, एवं घूमंतू जातियों को वन उपयोग के अधिकार-धारा 3.1 (d)
6. आदिम जातियों की बसाहट को सामुदायिक पद्धति से मालिकाना अधिकार प्रदत्त किया जाना-धारा 3.1 (e)
7. वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने का अधिकार-धारा3.1 (h)
8. सामुदायिक वन संसाधन के पुनर्निर्माण, सुरक्षा संवर्धन एवं प्रबंधन का अधिकार धारा-3.1 (i)
9. जैव विविधता का उपयोग तथा अपने परम्परागत ज्ञान(बौद्धिक संपदा के स्वामित्व अधिकारी-धारा-3.1 (i)
उपरोक्त अधिनियम, नियम, उपबंधो के लाभ हेतु क्रियान्वयन का भौतिक सर्वेक्षण, उपलब्धियों का सत्यापन एवं क्रियान्वयन में कमी के कारणों को जाना जावे।
संबंधितों को तत्काल लाभ पहुंचाये जाने के लिए सघन प्रयास किए जावे। अधिनियम के प्रचार-प्रसार, प्रशासनिक, सामाजिक एवं हितबद्ध निवासियों की (शासन, जिला, उपखण्ड, ब्लाक एवं पंचायत स्तर पर) पृथक-पृथक समिति (टोली) बनाया जाकर कार्यारंभ किये जाने की आवश्यकता है।