आयोग के कार्य एवं शक्तियॉं
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग अधिनियम-1995 के धारा-9-1 एवं 2 के अंदर आयोग का कृत्य एवं धारा-10 के
अंतर्गत आयोग की शक्तियॉं समाहित है, जो इस प्रकार है-
1. आयोग का यह कृत्य होगा कि वह:-
(क) अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को संविधान के अधीन तथा तत्समय प्रवृत्ति किसी अन्य विधि के अधीन दिये गये संरक्षण के लिये हितप्रहरी आयोग के रूप में कार्य करें।
(ख) किन्हीं विशिष्ट जनजातियों या जनजाति समुदायों या ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के यूथों को संविधान (अनुसूचित जनजातियों) आदेश 1950 में सम्मिलित करने के लिये कदम उठाने के लिये राज्य सरकार को सिफारिश करना।
(ग) अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिये बने कार्यक्रमों के समुचित तथा यथा समय कार्यान्वयन की निगरानी को तथा राज्य सरकार अथवा किसी अन्य निकाय या प्राधिकरण के कार्यक्रमों के संबंध में जो ऐसे कार्यक्रमों के लिये जिम्मेदार है, सुधार हेतु सुझाव दे।
(घ) लोक सेवाओं तथा शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिये अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण के संबंध में सलाह दे।
(ड़) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करे, जो राज्य सरकार द्वारा उसे सौंपे जाये।
2. आयोग की सलाह साधारणतः राज्य सरकार पर आबद्धकर होगी तथापि जहां सरकार सलाह को स्वीकार नहीं करती है वहॉं वह उसके लिये कारण अभिलिखित करेगी।
आयोग की शक्तियॉं :-
(10) आयोग की धारा-9 की उपधारा-1 के अधीन अपने कृत्यों का पालन करते समय और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों की बाबत् किसी वाद का विचारण करने वाले किसी सिविल न्यायालय की सभी शक्तियॉं होगी अर्थात-
(क) राज्य के किसी भी भाग में किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षण करना।
(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट करने और पेश करने की अपेक्षा करना।
(ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना।
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अध्यपेक्षा करना।
(ड़) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षण के लिये कमीशन निकालना, और
(च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाये।